इको-फ्रेंडली किचन: प्लास्टिक-फ्री और सस्टेनेबल किचन प्रोडक्ट्स | My Kitchen Diary

 

सस्टेनेबल किचन की ओर बढ़ाएं कदम!

आजकल जो माहौल है ना... बढ़ता प्रदूषण, बदलता मौसम, और हर तरफ गड़बड़-झाला इसमें कहीं ना कहीं हमारा भी थोड़ा हाथ है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सबकुछ छोड़-छाड़ के पहाड़ों में रहने चले जाएं। बदलाव की शुरुआत तो हम अपने घर से कर सकते हैं और घर में भी सबसे पहले रसोई से। अब ज़रा ध्यान से देखो अपनी रसोई को... प्लास्टिक हर कोने में घुसा पड़ा है। डब्बे, बोतलें, चम्मच, लपेटने वाला सामान सबकुछ प्लास्टिक का। और ये प्लास्टिक ऐसे ही नहीं मिटता... हज़ारों साल लग जाते हैं इसे गलने में। तब तक ये नदियों में बहता रहता है, समुद्रों में तैरता है, जंगलों में बिखरता है और आखिरकार हमारे खाने-पानी में मिल ही जाता है अब सोचो, जो चीज़ हम रोज़ खाना पकाने और रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं, वही हमारे शरीर को धीरे-धीरे नुकसान पहुँचा रही है। और सिर्फ हमें नहीं जानवरों, पक्षियों, और पूरी धरती को। लेकिन बात सिर्फ चिंता करने से नहीं बनेगी, कुछ छोटे-छोटे कदम उठाने होंगे। जैसे रसोई में थोड़ी समझदारी दिखानी होगी। प्लास्टिक की चीज़ों की जगह ऐसी चीज़ें लानी होंगी जो मिट्टी में गल जाएं, या फिर जिन्हें बार-बार इस्तेमाल किया जा सके। जैसे लकड़ी या पीतल के चम्मच, काँच की बोतलें, स्टील के डब्बे, और कपड़े की थैलियाँ। ये चीज़ें ना सिर्फ टिकाऊ होती हैं, बल्कि देखने में भी साफ-सुथरी और अच्छी लगती हैं। और सबसे बढ़िया बात ये सब हमारे स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर है। जहरीले रसायनों से बचाव होता है, और अपने खाने-पीने में भी एक तरह की सादगी और शुद्धता आ जाती है। ये लग रहा है कि मेरे अकेले से क्या होगा, तो बस इतना याद रखो बड़ा बदलाव हमेशा छोटी-छोटी कोशिशों से ही शुरू होता है। और जब शुरुआत अपनी रसोई से होगी, तो असर पूरे घर पर दिखेगा... और धीरे-धीरे दुनिया पर भी। अब बात करते हैं कुछ आसान और अच्छे विकल्पों की, जो आपकी रसोई को थोड़ा और टिकाऊ बना सकते हैं बिना ज्यादा झंझट के।


1. बांस से बने किचन प्रोडक्ट्स

बांस एक ऐसी चीज़ है जो कुदरत की तरफ से मिला बहुत ही बढ़िया तोहफ़ा है। सबसे बड़ी बात ये पेड़ बाकी पेड़ों की तरह सालों-साल नहीं लेता बड़ा होने में। बांस तो ऐसे झटपट बढ़ता है जैसे बारिश में मेथी के पत्ते। और इसे एक बार काटने के बाद भी, ये फिर से खुद उग आता है... बिना ज़मीन की हालत बिगाड़े। अब ज़रा सोचो, अगर इसी बांस से रसोई का सामान बन जाए जैसे चम्मच, काटने वाली पट्टी, थाली, ट्रे वगैरह तो क्या ही बढ़िया बात होगी। ये सब चीज़ें ना सिर्फ हल्की होती हैं, बल्कि इतनी मजबूत भी कि रोज़मर्रा के झंझट झेल जाएं। और सबसे ज़रूरी बात ये खुद-ब-खुद गल भी जाती हैं, यानी कचरे का झंझट नहीं। प्लास्टिक के मुकाबले ये बांस वाले बर्तन ज़्यादा टिकाऊ होते हैं। और सेहत के लिहाज़ से भी ये बेहतर होते हैं, क्योंकि इनमें ऐसे प्राकृतिक गुण होते हैं जो कीटाणुओं से लड़ते हैं। मतलब, जो बर्तन आप इस्तेमाल कर रहे हो, वो आपके खाने को साफ़-सुथरा रखने में भी मदद करता है। अब ये मत सोचो कि बांस का मतलब सिर्फ दिखावे के लिए होता है। ये वाकई काम का होता है और बहुत टिकाऊ भी। और सबसे अच्छी बात ये कि जब आप बांस के बने बर्तन इस्तेमाल करते हो, तो आप एक छोटा लेकिन असरदार कदम उठाते हो प्लास्टिक को ना कहने का। आपकी रसोई ज़्यादा साफ, ज़्यादा टिकाऊ और थोड़ी कुदरत के करीब हो, तो बांस के चम्मच, कटिंग बोर्ड और ऐसे कई साधारण सामान से शुरुआत की जा सकती है। धीरे-धीरे बदलाव आएगा लेकिन असर जरूर दिखेगा।

बांस से बने किचन प्रोडक्ट्स


2. स्टील और कांच के कंटेनर

हम जो रोज़ का खाना रखते हैं, पकाते हैं, ले जाते हैं... सब कुछ प्लास्टिक के डब्बों में। और वो डब्बे दिखने में चाहे जितने भी रंग-बिरंगे क्यों ना हों, असल में वो सेहत के लिए अच्छे नहीं होते। वजह? इनमें होते हैं कुछ ऐसे रसायन जैसे बिस्फेनेल A जिसे BPA कहते हैं जो खाने में घुल जाते हैं, और धीरे-धीरे शरीर में जहर की तरह काम करते हैं। यानी दिखता कुछ और है, असर कुछ और। अब इसका आसान सा हल है स्टील और कांच के डब्बों का इस्तेमाल। ये दोनों चीज़ें न सिर्फ साफ़-सुथरी होती हैं, बल्कि खाने को वैसे ही बनाए रखती हैं जैसे वो होना चाहिए बिना किसी रासायनिक मिलावट के। ऊपर से ना तो इनमें कोई बदबू आती है, ना रंग छोड़ते हैं, और ना ही बार-बार धोने पर घिसते हैं। स्टील वाले डब्बे तो वैसे भी हमारे दादी-नानी के ज़माने से चल रहे हैं और आज भी उतने ही भरोसेमंद हैं। अनाज, मसाले, सब्ज़ियाँ, यहाँ तक कि बचा हुआ खाना सब कुछ आराम से रखा जा सकता है। कांच के डब्बे थोड़े नाज़ुक ज़रूर होते हैं, लेकिन एक बार आदत लग गई तो बहुत काम के होते हैं साफ़ दिखता है अंदर क्या रखा है, और कोई गंध भी नहीं पकड़ते। सबसे बड़ी बात इन चीज़ों का इस्तेमाल करके हम प्लास्टिक के पहाड़ जैसे कचरे को थोड़ा हल्का कर सकते हैं। और जब हर घर में थोड़ी सी समझदारी दिखाई जाएगी, तो मिलकर असर बड़ा ही होगा। तो अगली बार जब नया डब्बा खरीदने का मन करे, तो एक बार सोचना प्लास्टिक से थोड़ा किनारा करके, स्टील या कांच को मौका देना शायद एक अच्छा फैसला होगा। और सेहत के साथ-साथ, धरती का भी भला होगा।

स्टील और कांच के कंटेनर


3. बीसवैक्स फूड रैप्स

जो अक्सर सबसे नज़रअंदाज़ होती है खाना लपेटने वाला प्लास्टिक। सब्ज़ी बची हो, पराठा रखना हो या टिफिन पैक करना हो, सीधे प्लास्टिक रैप निकाल लेते हैं। लेकिन ये छोटी सी आदत धीरे-धीरे कूड़े के पहाड़ में बदल जाती है... और वो भी ऐसा कूड़ा जो मिटने का नाम ही नहीं लेता। अब इसकी जगह अगर आप बीसवैक्स फूड रैप्स इस्तेमाल करो ना, तो चीज़ें एकदम बदल जाती हैं। ये रैप्स मधुमक्खी के मोम से बने होते हैं मतलब पूरी तरह से कुदरती। और सबसे अच्छी बात? ये बार-बार इस्तेमाल किए जा सकते हैं। खाना भी ताज़ा रहता है और ज़मीन पर बोझ भी नहीं बढ़ता। बीसवैक्स रैप्स ऐसे होते हैं जो हल्की गरमी से थोड़ा नरम हो जाते हैं, तो आराम से किसी भी चीज़ के ऊपर फिट हो जाते हैं। फिर चाहे वो कटोरी हो, फल हो, या बचा हुआ पराठा। और जब हो जाए इस्तेमाल, तो धो लो, सुखा लो, और फिर से इस्तेमाल करो। इनकी सबसे बड़ी खूबी ये है कि ये हवा से भी थोड़ा बचाव करते हैं, जिससे खाने में नमी बनी रहती है और वो जल्दी खराब नहीं होता। यानी एक रैप, कई बार काम का, और प्लास्टिक का झंझट बिल्कुल नहीं। रोज़मर्रा में थोड़ा बदलाव लाने का सोच रहे हो, तो बीसवैक्स फूड रैप्स से शुरुआत करो। ये दिखते भी प्यारे हैं, इस्तेमाल में आसान हैं, और एक छोटा सा कदम है जो सीधे धरती के भले की तरफ जाता है।

बीसवैक्स फूड रैप्स


4. रीयूजेबल सिलिकॉन बैग्स

आजकल एक चीज़ हर घर में दिख ही जाती है वो पारदर्शी सी ज़िपवाली प्लास्टिक की थैलियाँ। थोड़ी सब्ज़ी बची हो, टिफिन देना हो, या कुछ फ्रीज़ करना हो बस वही निकाल लेते हैं। काम आसान लगता है, लेकिन असल में ये छोटे-छोटे प्लास्टिक के टुकड़े मिलकर बड़ा नुक़सान कर जाते हैं। न मिटते हैं, न सड़ते हैं... बस जमा होते रहते हैं। अब अगर इस आदत को थोड़ा सा घुमा दें, और प्लास्टिक की जगह सिलिकॉन के थैले अपनाएं तो समझो खेल ही बदल गया। ये सिलिकॉन वाले थैले एक बार खरीद लो, फिर सालों साल काम आते हैं। ना फटते हैं, ना ढीले होते हैं... और फ्रीज़र से लेकर माइक्रोवेव तक, हर जगह चल जाते हैं। इनमें आप सब कुछ रख सकते हो बचा हुआ खाना, कटे हुए फल, दाल, यहां तक कि अचार भी। और जब काम हो जाए, तो बस पानी से धो लो, सूखा लो, और फिर से इस्तेमाल में ले आओ। न बदबू, न गड़बड़। सबसे अच्छी बात ये है कि इनसे प्लास्टिक जितना कचरा नहीं बनता। मतलब सीधा असर कम गंदगी, साफ़ धरती। और आपको भी बार-बार नई थैलियाँ खरीदने का झंझट नहीं। अपनी रसोई को थोड़ा समझदार और धरती के लिए थोड़ी कम भारी बनाना चाहते हो, तो अगली बार प्लास्टिक की थैली उठाने से पहले एक बार रुक कर सोचना क्या सिलिकॉन वाला विकल्प बेहतर नहीं होगा?

रीयूजेबल सिलिकॉन बैग्स


5. कम्पोस्टेबल कचरा बैग्स

रोज़ की रसोई में सबसे ज़्यादा जो चीज़ निकलती है ना, वो है कचरा सब्ज़ियों के छिलके, चायपत्ती, बचा हुआ खाना, और ऊपर से वही प्लास्टिक वाला कचरा बैग जिसमें सब कुछ लपेट कर फेंक देते हैं। अब ये प्लास्टिक वाला बैग खुद तो सालों तक मिटता ही नहीं, ऊपर से जो अंदर रखा है, उसका भी कुछ नहीं हो पाता। अब इसका एक सीधा-साधा, समझदारी वाला हल है बायोडिग्रेडेबल या कम्पोस्टेबल कचरा बैग्स। ये बैग्स वैसे ही दिखते हैं, लेकिन फर्क ये है कि ये खुद भी धीरे-धीरे गल जाते हैं और ज़मीन में मिल जाते हैं। मतलब कूड़े का कूड़ा भी ज़मीन के लिए फायदेमंद बन जाता है। इन बैग्स में आप वो सब कुछ डाल सकते हो जो नेचर से आया है छिलके, बची हुई दाल, पुराने फल, चायपत्ती, यहां तक कि वो सूखे फूल भी जो पूजा के बाद संभाल नहीं आते। और जब ये बैग पूरा भर जाए, तो उसे फेंक दो कम्पोस्टिंग के लिए थोड़े टाइम में वो बैग और उसका सारा अंदरूनी माल मिलकर बढ़िया खाद में बदल जाते हैं। फायदा? सीधा सा है कम प्लास्टिक, कम गंदगी, ज़्यादा साफ-सफाई... और थोड़ा-सा सुकून भी कि चलो, कुछ तो अच्छा किया आज के दिन में।जब कचरे की थैली खरीदने जाओ, एक बार सोच लेना प्लास्टिक वाली पुरानी आदत को छोड़कर, क्या बायोडिग्रेडेबल वाला नया तरीका ट्राय करना चाहिए?

कम्पोस्टेबल कचरा बैग्स


6. नेचुरल क्लीनिंग प्रोडक्ट्स

हर बार जब हम किचन साफ़ करते हैं, तो एक ढक्कन खोलते हैं और धुएँ जैसा कुछ नाक में घुस जाता है। आँखों में चुभन, हाथों पर खुजली और मन में एक ही सवाल किचन साफ़ कर रहे हैं या गैस चेंबर बना रहे हैं? असल में, ज़्यादातर क्लीनिंग प्रोडक्ट्स में इतने सारे केमिकल्स होते हैं कि गंदगी के साथ-साथ हमारी सेहत पर भी वार करते हैं। तो इसका तोड़ क्या है? वही पुरानी, आजमाई हुई चीज़ें नींबू, सिरका और बेकिंग सोडा। नींबू है नेचर का स्क्रब चिकनाई हटाओ, बदबू मिटाओ, और थोड़ा सा नींबू घिस दो तो टाइल्स भी मुस्कराने लगती हैं। सिरका तो ऐसा है जैसे मम्मी का जादू जहाँ भी लगे कि जम गया है कुछ, थोड़ा सिरका डालो, सब ढीला हो जाता है। और बेकिंग सोडा? वो तो हर जगह फिट बैठता है स्टोव की सफाई, सिंक की चमक या डस्टबिन की बदबू, सब पे भारी। इन चीज़ों की सबसे बड़ी बात? ये हमारे हाथों, साँसों और धरती तीनों के लिए सॉफ्ट रहती हैं। न कोई जलन, न प्रदूषण, और न कोई टॉक्सिक असर। और जब आप खुद से अपनी किचन को इन नेचुरल चीज़ों से साफ़ करते हो, तो वो संतुष्टि मिलता है ना जैसे घर के खाने में प्यार डालने से मिलता है। तो अगली बार जब सफाई की बारी आए, ज़रा सोच लेना क्या वो चमक किसी केमिकल के दम पर चाहिए, या थोड़ी समझदारी और पुराने नुस्खों से भी काम चल सकता है

नेचुरल क्लीनिंग प्रोडक्ट्स


7. कपड़े के नैपकिन और थैले

ये प्लास्टिक बैग्स और पेपर नैपकिन वाले चक्कर तो हर घर में चलते ही हैं। थोड़ा सब्ज़ी लानी हो, फट से प्लास्टिक बैग उठा लिया। खाना खाया, हाथ पोंछने के लिए पेपर नैपकिन लिया और डस्टबिन में डाल दिया। काम तो हो गया, पर पीछे छूट गया ढेर सारा कचरा जो मिटने का नाम नहीं लेता। अब ज़रा सोचना, बचपन में जब बाज़ार जाते थे तो माँ कपड़े का थैला पकड़ा देती थीं। चाहे सब्ज़ी हो, किराना हो या कुछ और वो थैला ही हर बार साथ जाता था, धोया जाता था और फिर से इस्तेमाल होता था। उसी तरह खाने के बाद हाथ पोंछने के लिए रुमाल या छोटा कपड़ा होता था, जो धोकर फिर से तैयार हो जाता था। सीधी सी बात है कपड़े के थैले और नैपकिन एक बार लाओ, फिर जितनी बार चाहे इस्तेमाल करो। ना कचरा बढ़ता है, ना बार-बार नया लाने का झंझट। थैला धुल गया तो फिर से बाज़ार के लिए तैयार, नैपकिन धुल गया तो अगली बार परोसने के लिए तैयार। और सबसे अच्छी बात प्लास्टिक का बोझ कम होता है, किचन साफ़ रहता है, और खुद को भी अच्छा लगता है कि चलो, थोड़ा तो सुधर रहे हैं। जब बाज़ार जाने का प्लान बनाओ, वो कपड़े वाला थैला झट से निकाल लेना जो अलमारी के किसी कोने में पड़ा रहता है। और पेपर नैपकिन की जगह वो सुंदर सा कपड़े का नैपकिन इस्तेमाल करना जो खाने के साथ-साथ यादों को भी संभाल कर रखेगा।

कपड़े के नैपकिन

सस्टेनेबल किचन का मतलब कोई बड़ी-बड़ी चीज़ें बदलना नहीं हैबस रोज़ की छोटी-छोटी आदतों में थोड़ा सा फेरबदल। बांस के बर्तन उठाओ, प्लास्टिक की जगह स्टील-कांच रखो, क्लीनिंग में वो पुराना नींबू-सिरका अपनाओ और धीरे-धीरे तुम्हारी किचन भी साफ़, हेल्दी और प्लास्टिक-फ्री बन जाएगी। फायदा? अपने घर का माहौल भी सुधरता है, और बाहर की दुनिया का भी। एक छोटे से चम्मच से शुरुआत करो, असर दूर तक जाएगा। कहने का मतलब ये है कि बदलाव कोई एकदम से नहीं आता, लेकिन अगर हम धीरे-धीरे सोच समझ के चीज़ें चुनें, तो किचन से लेकर पूरा घर, और फिर पूरी धरती, सब कुछ थोड़ा और बेहतर हो सकता है।


📢 क्या आप भी सस्टेनेबल किचन की ओर कदम बढ़ा रहे हैं? हमें कमेंट में बताएं कि आप कौन से इको-फ्रेंडली किचन प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करते हैं!

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