सेल्फ-केयर किचन टिप्स: खाना पकाने के दौरान हेल्थ टिप्स | My Kitchen Diary

 

स्वस्थ रहने के लिए किचन में अपनाएं ये सेल्फ-केयर टिप्स!

खाना बनाना सिर्फ ज़रूरत पूरी करने वाली चीज़ नहीं है। ये कोई पेट भरने का काम भर नहीं है। असली बात तो ये है कि जो कुछ भी हम रोज़ अपने हाथों से पकाते हैं, उसका हमारी सेहत पर सीधा असर पड़ता है। जैसे जिस तरह बारिश का पानी धीरे-धीरे ज़मीन में उतरकर बीजों को ज़िंदा करता है, वैसे ही सही पकाया हुआ खाना हमारी अंदरूनी सेहत को मजबूत बनाता है। अब पकाना मतलब सिर्फ तेल डालना, मसाले मिलाना और चूल्हे पर रख देना नहीं होता। उसमें थोड़ा मन लगाना पड़ता है, थोड़ी समझदारी भी। जैसे अगर सब्ज़ी ज़्यादा देर तक पकाई, तो उसके अंदर जो असली गुण होते हैं, वो उड़ जाते हैं। और अगर ज़्यादा तेल डाल दिया, तो स्वाद भले ही आए, मगर शरीर को बोझ ज़्यादा पड़ता है। ऐसी कुछ छोटी-छोटी बातें होती हैं, जो अगर रोज़ की आदत बन जाएँ, तो सेहत में धीरे-धीरे बड़े बदलाव नज़र आने लगते हैं। जैसे सुबह उठकर एक गिलास गरम पानी पीने से दिन भर हलकापन महसूस होता है, वैसे ही थोड़ी सी समझदारी वाली रसोई हमारी रोज़मर्रा की थकान को काफी हद तक कम कर सकती है। और ये जो रसोई है ना, ये भी एक तरह की देखभाल है। बस फ़र्क इतना है कि यहां चेहरे पर क्रीम नहीं लगती, बल्कि थाली में पोषण आता है। कई बार हम सोचते हैं कि देखभाल मतलब सौंदर्य, लेकिन असल देखभाल तो वहीं होती है जहाँ हम खुद को भीतर से मजबूत बना रहे होते हैं और उसका रास्ता रसोई से होकर ही निकलता है। तो अगली बार जब भी आप रसोई में कुछ पकाने जाएँ, तो ज़रा ये सोच कर देखना कि आप सिर्फ खाना नहीं बना रहे आप अपने लिए एक छोटी-सी देखभाल की थाली सजा रहे हैं। और हाँ, उसमें ज़रूरी नहीं कि कुछ बहुत बड़ा पकाना हो कभी-कभी सादी खिचड़ी भी वही सुकून दे जाती है जो किसी बड़े होटल की थाली नहीं दे पाती।


1. सही कुकिंग ऑयल का करें चयन

जो भी चीज़ रोज़ के खाने में इस्तेमाल होती है, उसका असर सीधा हमारे शरीर पर पड़ता है और उसमें से एक सबसे ज़रूरी चीज़ है हमारा खाना पकाने वाला तेल। अब ज़्यादातर लोग बिना सोचे-समझे तेल उठा लेते हैं, जो दिखने में साफ़-सुथरा लगे या टीवी पर आता हो, लेकिन असली खेल तो उसके अंदर की चीज़ों का होता है। ये जो रिफाइंड तेल होते हैं ना, इनको इतना ज़्यादा प्रोसेस किया जाता है कि उसमें से ज़्यादातर अच्छाई निकल ही जाती है। ऊपर से जो फालतू के रसायन उसमें डालते हैं, वो हमारे शरीर के लिए धीरे-धीरे नुकसानदायक बन जाते हैं। कुछ ऐसा जैसे आप रोज़ प्लास्टिक की थाली में खाना खाएं दिखेगा तो खाना अच्छा, लेकिन असर अंदर दिखेगा धीरे-धीरे। इसलिए थोड़ा ध्यान देकर, थोड़ा प्यार से, जब भी तेल चुनो, तो कोशिश करो कोल्ड-प्रेस्ड या वर्जिन तेल इस्तेमाल करने की। ये वैसे ही होते हैं जैसे घर का घी सीधा, सच्चा, बिना मिलावट वाला। इनमें वो अच्छे वाले फैटी एसिड होते हैं जो शरीर को सहारा देते हैं, बोझ नहीं। अब बात करें कुछ तेलों की जो हमारे अपने देशी खज़ाने में सालों से चले आ रहे हैं सरसों का तेल अरे ये तो हर घर की सर्दियों वाली पहचान है। इसकी खुशबू ही बता देती है कि अब कुछ ज़ोरदार पकने वाला है। ये तेल शरीर के अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाता है, दिल को मज़बूती देता है और ठंडी में तो जैसे शरीर की रफ़्तार को गरमी देता है। इसमें जो गुण होते हैं, वो अंदर की सूजन को भी कम करते हैं जैसे पुराने ज़माने में लोग मालिश इसी से करते थे, वही बात अब भी सही बैठती है। तिल का तेल थोड़ा गाढ़ा ज़रूर होता है, लेकिन इसके फ़ायदे भी गहरे होते हैं। इसमें ओमेगा-3 होता है, जो शरीर की अंदरूनी जलन को शांत करता है। हड्डियों को मजबूत बनाता है, और अगर ठंडी के दिनों में नहाने से पहले इससे मालिश कर ली जाए, तो हड्डियाँ तक ‘शुक्रिया’ बोलती हैं। नारियल का तेल v अब ये वाला तेल थोड़ा हल्का होता है, लेकिन असरदार बहुत होता है। इसमें ऐसे खास तत्व होते हैं जो तुरंत ऊर्जा देते हैं और पाचन क्रिया को भी तेज़ करते हैं। मतलब अगर खाना बनाते वक्त थोड़ा नारियल तेल यूज़ कर लो, तो ना सिर्फ स्वाद बढ़ता है, बल्कि शरीर भी चुस्त रहता है। तो बस अगली बार जब भी तेल की बोतल लेने जाओ, तो एक बार लेबल पलटकर देख लेना उसमें सिर्फ नाम नहीं, सेहत भी छुपी होती है। और कोशिश करो कि जो चीज़ें हमारी दादी-नानी सालों से इस्तेमाल करती आई हैं, वही अपनाएं किचन में भी और ज़िंदगी में भी।

सही कुकिंग ऑयल


2. नॉन-टॉक्सिक कुकवेयर का करें इस्तेमाल

सिर्फ हम क्या खा रहे हैं, ये मायने नहीं रखता, बल्कि किसमें खा रहे हैं और किसमें बना रहे हैं, ये भी उतना ही ज़रूरी है। आजकल किचन में जितनी तरकीबें और चीज़ें आ गई हैं ना, उनमें से कई देखने में तो बड़ी स्टाइलिश लगती हैं, लेकिन सेहत के हिसाब से उल्टी गिनती शुरू कर देती हैं। जैसे ये जो नॉन-स्टिक बर्तन होते हैं दिखने में चिकने-चुपड़े, काम में आसान, लेकिन जब गरम होते हैं तो अंदर से वो टेफ्लॉन वाला कोटिंग पिघलने लगता है, और धीरे-धीरे हानिकारक चीज़ें खाने में मिलती रहती हैं। मतलब ऊपर से तो खाना बिना चिपके पक रहा होता है, लेकिन अंदर-अंदर शरीर पर असर छोड़ रहा होता है जैसे कोई रिश्तेदार मीठा बोलकर नुक़सान कर जाए। अब इसका हल क्या है? वही पुरानी, लेकिन दमदार चीज़ें जैसे लोहे की कड़ाही, स्टील की थाली, और मिट्टी के हांडी। ये चीज़ें ना सिर्फ मज़बूत होती हैं, बल्कि शरीर के लिए भी फ़ायदे वाली होती हैं। लोहे का बर्तन खासकर कास्ट आयरन का तवा या कड़ाही, ये तो जैसे पुराने ज़माने का सुपरफ़ूड हो गया। इसमें जब सब्ज़ी या रोटी बनती है, तो हल्की-सी लोहे की मात्रा खाने में मिलती रहती है और ये आयरन की कमी से लड़ने में मदद करता है। साथ ही, इसमें जो स्वाद आता है, वो किसी चमकते हुए बर्तन में नहीं मिलता। और टिकाऊ भी इतने होते हैं कि एक बार ले लिया तो पोते तक काम आए। मिट्टी के बर्तन अब ये चीज़ तो सीधे ज़मीन से जुड़ी होती है, और उसी का असर खाने पर भी पड़ता है। जब मिट्टी की हांडी में खाना पकता है, तो उसकी खुशबू ही कुछ और होती है। और जो पोषक तत्व होते हैं ना, वो ज्यों के त्यों बने रहते हैं न ज़्यादा उबाल, न ज़्यादा नुकसान। जैसे धरती से निकली चीज़, सीधी आत्मा तक पहुंच जाए इतना सीधा कनेक्शन। तो हाँ, थोड़ी मेहनत ज़रूर लगती है इन बर्तनों को संभालने में लोहे की कड़ाही को घिसना पड़ेगा, मिट्टी के बर्तनों को अच्छे से सुखाना पड़ेगा लेकिन बदले में जो सेहत और स्वाद मिलता है, वो किसी मॉडर्न चमचमाते सेट में नहीं मिलेगा। जब बाज़ार जाओ और कोई नया बर्तन लेने का मन बने, तो बस ये सोचकर लेना कि वो सिर्फ दिखने भर के लिए नहीं, आपके शरीर का साथी बनने वाला है। और साथी वही अच्छा जो सालों साथ दे चाहे थोड़ा खुरदुरा ही क्यों न हो।

स्टील या मिट्टी के बर्तन


3. ज्यादा फ्राई करने से बचें, स्टीमिंग या ग्रिलिंग अपनाएं

जो चीज़ हमें सबसे ज़्यादा लुभाती है ना मतलब वो गरमागरम कुरकुरी पूरी, आलू भरा समोसा या फिर वो तली हुई मिर्ची वही चीज़ हमारे शरीर को सबसे ज़्यादा थकाने लगती है। और वजह है ज़्यादा तेल। जब खाना डीप फ्राई होता है, तो तेल अंदर तक समा जाता है। मतलब स्वाद तो आता है, लेकिन साथ में कैलोरी की गाड़ी भी फुल स्पीड में चल पड़ती है। और फिर शुरू होती है पेट भारी लगने की शिकायत, कोलेस्ट्रॉल का खेल, और एनर्जी का घोंघा बन जाना। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हमें कुरकुरे खाने का मन ही मार देना चाहिए बस तरीका थोड़ा बदलना होता है। जैसे आजकल की दुनिया में कुछ आसान, समझदार और सेहतमंद तरीके आ गए हैं, जो खाना भी स्वादिष्ट रखते हैं और सेहत भी संभालते हैं। एयर फ्रायिंग अब ये चीज़ सुनने में थोड़ी मशीन जैसी लगे, लेकिन असल में है काफ़ी समझदार। इसमें बहुत थोड़ा सा तेल लगता है, लेकिन खाना फिर भी बाहर से कुरकुरा और अंदर से मुलायम बनता है। मतलब आलू टिक्की भी खाओ, लेकिन बिना उस तेल के बोझ के जो बाद में अफसोस बन जाए। स्टीमिंग ये तरीका थोड़ा शांत किस्म का है, जैसे योगा। बिना शोर-शराबा, बिना ज़्यादा झनझनाहट, सीधे-साफ़ पकाना। इसमें सब्ज़ियाँ पकती हैं अपने असली रंग और स्वाद के साथ। और जो जरूरी पोषक तत्व होते हैं ना जैसे विटामिन और खनिज वो सब बचा रहता है। खासकर सुबह का नाश्ता अगर स्टीम्ड हो, तो दिन का आधा बोझ वैसे ही हल्का लगने लगता है। ग्रिलिंग अब ये तरीका थोड़ा स्टाइलिश भी है और काम का भी। जब कुछ चीज़ें ग्रिल होती हैं, तो उनका जो अतिरिक्त तेल होता है, वो बाहर आ जाता है मतलब हल्का भी, स्वादिष्ट भी। और जो ऊपर से थोड़ा जला-जला सा ‘स्मोकी स्वाद’ आता है, वो तो जैसे भूख को दोगुना कर देता है। चाहो तो भुट्टे जैसी चीज़ों से शुरू करो, या पनीर, या हल्का मसालेदार फिश स्वाद से कोई समझौता नहीं और सेहत की भी सलामती। तो कुल मिलाकर बात बस इतनी है खाना वही जो दिल को भाए, लेकिन तरीक़ा थोड़ा ऐसा चुनो कि बाद में शरीर बोले, ठीक है, चलो आज तुमने अच्छा किया।

स्टीमिंग या ग्रिलिंग


4. ऑर्गेनिक और फ्रेश सामग्री को दें प्राथमिकता

आजकल हर चीज़ में तेज़ी और चमक आ गई है ना बस उसी के चक्कर में हम कई बार खाना भी ऐसा चुन लेते हैं, जो दिखने में तो ताज़ा लगता है, लेकिन अंदर से जैसे थका हुआ हो। और इसकी सबसे बड़ी वजह होती है वो केमिकल्स, जो सब्ज़ियों और फलों को लंबा टिकाने के लिए, या दिखने में सुंदर बनाने के लिए डाले जाते हैं। अब सोचो, जो चीज़ खेत से निकलने के बाद आठ-दस दिन तक वैसे की वैसी दिखती है, उसमें ज़रूर कुछ तो ऐसा है जो शरीर को धीरे-धीरे परेशान करता होगा। इसीलिए ज़रूरी हो गया है कि हम जितना हो सके, ऑर्गेनिक यानी बिना ज़हर वाली चीज़ें अपनाएं। ऑर्गेनिक फल और सब्ज़ियाँ ये ना सिर्फ ताज़गी से भरपूर होती हैं, बल्कि जब खाओ तो स्वाद भी असली आता है जैसे आम खाने पर सच में आम का स्वाद आए, ना कि सिर्फ चीनी और रंग। और जो पोषक तत्व होते हैं ना, वो भी पूरे होते हैं मतलब खाना सिर्फ पेट नहीं भरता, बल्कि शरीर को सही ईंधन भी देता है घर पर मसाले पीसना अब ये काम थोड़ा मेहनत वाला ज़रूर है, लेकिन मज़ा कुछ और ही होता है। जो मसाला आपने खुद अपने हाथों से भुना, पिसा उसमें सिर्फ स्वाद नहीं, एक अपनापन भी होता है। पैकेट वाले मसालों में अक्सर वो चीज़ें डाली जाती हैं जो उन्हें ज़्यादा दिन तक संभाल कर रखें, लेकिन शरीर के लिए वो धीरे-धीरे बोझ बनती हैं। वहीं, घर का मसाला सिर्फ मसाला नहीं होता वो आपकी रसोई की पहचान होता है। थोड़ी-थोड़ी आदतें हैं बस जैसे सब्ज़ी लेते वक़्त थोड़ा देख लेना कि कौन-सी किसान मंडी से आई है, या पास के भरोसेमंद किसी किसान से सीधा खरीद लेना। और मसाले? कभी-कभी घर में मिक्सी की आवाज़ भी ज़रूरी होती है थोड़ी हल्दी, थोड़ा धनिया, थोड़ा जीरा पिसते हुए जो खुशबू आती है, वही रसोई को घर बना देती है।बात इतनी सी है खाना वही खाओ जो शरीर को लगे अपना-सा, ना कि सिर्फ पैकेट में सुंदर दिखे। स्वाद भी आएगा, सुकून भी मिलेगा और सेहत भी धीरे-धीरे थैंक यू बोलेगी।

ऑर्गेनिक और फ्रेश सामग्री


5. खाना पकाने के दौरान पानी का सही उपयोग करें

अक्सर हम सोचते हैं कि खाना तो बस पकाना है जितनी जल्दी हो जाए, उतना अच्छा। लेकिन सच्चाई ये है कि जैसे हर इंसान को थोड़ा ध्यान और प्यार चाहिए होता है, वैसे ही खाने को भी थोड़ा सलीका चाहिए। और उसमें सबसे ज़रूरी रोल होता है पानी का। कई बार हम सब्ज़ियों को इतना ज़्यादा उबाल देते हैं कि जो पोषण उनमें था, वो पानी में घुल जाता है, और फिर वो पानी भी हम फेंक देते हैं। मतलब सब्ज़ी बची रह जाती है, लेकिन उसका असली दम चला जाता है। खासकर विटामिन C और B-कॉम्प्लेक्स ये दोनों बहुत नाज़ुक होते हैं, और ज़्यादा उबाल झेल नहीं पाते। धीमी आंच पर पकाना अब ये चीज़ थोड़ी सी धैर्य माँगती है, लेकिन फायदा देखो जब आप लो फ्लेम पर खाना पकाते हो, तो हर चीज़ धीरे-धीरे पकती है, पोषक तत्व बने रहते हैं, और स्वाद में भी एक गहराई आ जाती है। जैसे दाल जब धीरे-धीरे सीटी लेकर गलती है, तो उसमें जो स्वाद आता है, वो प्रेशर कुकर की तेज़ सीटी में नहीं मिलता। और हाँ, एक और बात जो अक्सर लोग भूल जाते हैं खुद को हाइड्रेट रखना। किचन में रहते हुए गर्मी, भाप, भाग-दौड़ सबकुछ होता है, लेकिन हम पानी पीना भूल जाते हैं। फिर थकान चढ़ती है, चक्कर आते हैं, और हम सोचते हैं अरे ये तो गर्मी की वजह से है। जबकि असली वजह होती है शरीर में पानी की कमी। तो खाना बनाते वक़्त बस एक काम और जोड़ लो गैस धीमी रखो और पास में एक बोतल पानी रखो। खुद भी तरोताज़ा रहो और खाने में भी जान बनी रहे। छोटे-छोटे बदलाव हैं, लेकिन असर बड़ा होता है सेहत में, मूड में, और खाने के स्वाद में भी।

पानी का सही उपयोग


6. खाने में फाइबर और प्रोबायोटिक्स को करें शामिल

पेट की बात जब भी आती है ना, तो हम अक्सर उसे बस भूख और खाना तक ही सीमित रख देते हैं। लेकिन सच्चाई ये है कि पेट की सेहत का सीधा कनेक्शन हमारे मूड, एनर्जी और यहां तक कि सोचने के तरीके से भी होता है। और इस पूरे सिस्टम को सही रखने के लिए दो चीज़ें बहुत जरूरी होती हैं फाइबर और प्रोबायोटिक्स। सोचो जैसे पेट एक छोटा-सा शहर है उसमें अच्छे और बुरे बैक्टीरिया रहते हैं। अब अगर आप उन्हें रोज़ काम की चीज़ें नहीं दोगे जैसे दही, छाछ या फाइबर वाली सब्जियाँ तो वो बाशिंदे नाराज़ हो जाएंगे। पेट भारी लगने लगेगा, गैस बनेगी, और मूड भी डाउन। दही और छाछ ये दो चीज़ें एकदम देसी डॉक्टर हैं। पेट के लिए जैसे पुराने जमाने की चिट्ठी सीधे और असरदार। इनमें जो प्रोबायोटिक्स होते हैं, वो पेट के अच्छे बैक्टीरिया को मज़बूत बनाते हैं। और छाछ? गर्मियों में तो जैसे शरीर को ठंडक का आमंत्रण देती है हल्की, हाजमेदार और मन को सुकून देने वाली। फाइबर से भरपूर सब्जियाँ अब गाजर हो या पालक, मटर हो या ब्रोकली, ये सब पेट की झाड़ू हैं। एकदम सफाई कर्मचारी टाइप काम करती हैं कब्ज से लेकर पेट फूलने तक सब ठीक कर देती हैं। और साथ ही पेट को भरा-भरा सा रखते हैं, तो फालतू स्नैकिंग से भी बच जाते हो। अंकुरित अनाज ये तो जैसे खाने में चुपचाप सुपरपावर भर देते हैं। मूंग, चना, रागी जब इन्हें भिगोकर और फिर अंकुरित करके खाते हो, तो उनमें पोषक तत्व दो गुना हो जाते हैं। और साथ में कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर मतलब अंदर से मजबूत बनाने वाला फुल पैकेज मिल जाता है। रोज़ की थकान, पेट की चुपचाप परेशानियाँ, या खाना खाते ही भारीपन महसूस होता है तो ज़रा अपनी थाली में इन छोटी-छोटी चीज़ों को जोड़ना शुरू करो। दही एक कटोरी, अंकुरित अनाज एक मुट्ठी, और सब्ज़ियाँ जो रंग-बिरंगी हों दिन बदलने लगेगा।

फाइबर और प्रोबायोटिक्स


7. किचन में साफ-सफाई का रखें खास ध्यान

खाना बनाना तो एक बात है... लेकिन उस रसोई का साफ रहना वो असल में हेल्दी लाइफ का बैकबोन होता है। मतलब आप कितना भी अच्छा खाना बना लो, अगर किचन गंदा है, तो सारा खेल वहीं खत्म हो जाता है। जैसे अच्छे कपड़े पहन कर कीचड़ में चलने जैसा कोई मतलब नहीं बनता। हाथ धोना अब ये बात बहुत बेसिक लगती है, लेकिन यही सबसे ज़्यादा इग्नोर होती है। खाना बनाने से पहले और बाद में हाथ धोना, सुनने में छोटा है पर असर बहुत बड़ा करता है। वरना वही हाथ सब्ज़ियों से लेकर मसालों तक, और फिर खाने तक हर चीज़ में बैक्टीरिया टूर पर भेज देते हैं। तो साबुन से हाथ धोना कोई फॉर्मेलिटी नहीं है वो आपकी सेहत की पहली डिफेंस लाइन है किचन स्पंज और कपड़े अब ये चीज़ें दिखने में तो छोटी होती हैं, लेकिन इनमें जितनी गंदगी और बैक्टीरिया छुपे होते हैं, वो एक छोटी सी लैब जैसा माहौल बना देते हैं। सोचो, वही स्पंज जो आप बर्तन धोने में यूज़ कर रहे हो, अगर हफ्तों से नहीं बदला गया, तो उसमें नमी, तेल और खाना सबका मिक्सचर पड़ा रहता है। और वही बनता है फंगस और बदबू का ठिकाना। एक सिंपल आदत बना लो हफ्ते में एक बार स्पंज को उबाल के सुखा दो या नया ले आओ। और किचन के कपड़े भी ऐसे ना हों कि वो खुद एक अलग रेसिपी बन जाएं एक दो दिन में बदलते रहो, वरना सफाई करते-करते और गंदगी फैल जाती है।

साफ-सफाई

अब सेल्फ-केयर का नाम लेते ही ज़्यादातर लोग सोचते हैं फेस मास्क, योगा मैट, ग्रीन टी, और थोड़ा सा इंस्टाग्राम वाला वाइब। लेकिन असली सेल्फ-केयर तो वहीं से शुरू होती है जहां रोज़ की ज़िंदगी सबसे ज़्यादा बीतती है किचन में। मतलब सोचो ना, आप स्किन पर कितना भी सीरम लगाओ, अगर अंदर से खाना ठीक नहीं जा रहा, तो ग्लो आने वाला नहीं है। एक्सरसाइज़ कर लो जितनी मर्ज़ी, लेकिन अगर तेल और बर्तनों का चयन गड़बड़ है, तो शरीर थकान से ही भरा रहेगा। सही तेल चुनना, सही बर्तन में पकाना, और कुकिंग की टेक्निक को थोड़ा सा हेल्दी मोड़ देना ये छोटे-छोटे फैसले हैं, जो धीरे-धीरे एक बड़ी हेल्दी आदत में बदल जाते हैं। और खास बात ये कि इनमें से कोई भी चीज़ रॉकेट साइंस नहीं है। सब कुछ हमारे आसपास ही है बस थोड़ी सी नज़र और थोड़ा सा ध्यान चाहिए। याद रखो, खुद की सेहत का ख्याल रखना कोई लक्ज़री नहीं है ये तो ज़िम्मेदारी है। और वो भी ऐसी जो सिर्फ आज नहीं, कल और आने वाले कई सालों तक फायदा देगी। जैसे बचपन में मम्मी बार-बार कहती थीं, अभी ध्यान रख लोगे, तो बाद में दिक्कत नहीं होगी। वही बात यहां भी लागू होती है।


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